स्वास्थ्य विभाग पर उठे सवाल, बुखार में लगा दिया कुत्ते के काटने वाला टीका
बगहां से रमेश ठाकुर के सहयोग से बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट।
बगहा(पच्छिम चम्पारण)
बगहा अनुमंडलीय अस्पताल की लापरवाही ने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो ने अस्पताल प्रशासन और डॉक्टरों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि वीडियो की पुष्टि न्यूज पोर्टल नहीं करता है।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बुखार से जूझ रहे एक मरीज को इलाज के नाम पर डॉक्टरों ने रेबीज (कुत्ते के काटने पर लगने वाला) इंजेक्शन लगा दिया। यह मामला सामने आने के बाद क्षेत्र के लोग गुस्से में हैं और अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप जड़ रहे हैं।
परिजनों का आरोप: जिंदगी से खिलवाड़ किया गया
मरीज के परिजनों का कहना है,
हमें उम्मीद थी कि सरकारी अस्पताल में जाकर सही इलाज मिलेगा, लेकिन यहां तो बुखार में भी रेबीज का इंजेक्शन लगा दिया गया। यह तो सीधी-सीधी मरीज की जिंदगी से खिलवाड़ है। अगर समय रहते ध्यान न देते तो मरीज की हालत और बिगड़ सकती थी।”
लोगों का गुस्सा, बोली जनता
घटना के बाद इलाके के लोग भड़क गए। स्थानीय ग्रामीणों ने कहा—”ये डॉक्टर हैं या खिलवाड़ करने वाले लोग? जिन्हें साधारण बुखार का इलाज करना नहीं आता, उनसे मरीजों की जान सुरक्षित कैसे रहेगी? गरीब लोग मजबूरी में सरकारी अस्पताल आते हैं और यहां उन्हें मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।”
सोशल मीडिया पर हंगामा
वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया। लोग तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कोई डॉक्टरों को ‘कसाई’ कह रहा है तो कोई अस्पताल को ‘मौत का अड्डा’। इस घटना ने स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
*स्वास्थ्य विभाग हरकत में*
मामला तूल पकड़ता देख सिविल सर्जन ने सफाई दी है। उन्होंने कहा—”वीडियो की जांच कराई जा रही है। यदि चिकित्सकों की गलती पाई जाती है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा।”
*इलाके में आक्रोश*
इस घटना ने पूरे बगहा इलाके में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। लोग स्वास्थ्य विभाग से तत्काल और कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर अब भी जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।
स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन जमीनी हकीकत सामने आने पर स्थिति अलग ही कहानी बयां करती है।
क्या सचमुच आम आदमी की जिंदगी की कोई कीमत नहीं?
क्या गरीब मरीज सिर्फ प्रयोग की वस्तु बन गए हैं?
इन सवालों ने पूरे प्रशासनिक तंत्र को कठघरे में खड़ा कर दिया है।