पूर्वी चंपारण: अखबार वालों के लिए आधा सच और आधा झूठ लिखने की प्रथा अब सामान्य हो चुकी है..! छोटी सी हेडलाइन ने बड़े प्रोपगेंडा को जन्म दिया है। जिस बात को संजीदगी से लिखनी थी, वो गायब है, लेकिन प्रचारतंत्र हावी है।
महामारी के दौर में जागरूकता के नाम पर खौफ, दहशत और नफ़रत को ऐसे ही हावी किया जाता है, मौत का तमाशा आप भी देख लिजिए.. यह घटना है घटना पूर्वी चंपारण जिले के झरौखर पंचायत कोरैया गांव की है।
१. मेन हेडिंग ही फेक है, क्योंकि मरने वाले लोग एक ही परिवार के नहीं है.
२. महामारी से मरने वाले सभी मृतकों के नाम दर्ज नहीं है,
जबकि जिनकी मौत कविड से नहीं हुई है, उनका नाम इसमें अंकित किया गया है.
३. फर्जी तरीके से पूरे गांव को खौफजदा बताया गया है, बांस की बैरिकेटिंग दिखाई जा रही है, जागरूकता के नाम पर पड़ोसी गांवों से नफरत बढ़ाया जा रहा है, झूठ और प्रोपेगंडा का सहारा लेकर ग्राम वासियों की छवि खराब की गई है।
४. पूरी स्टोरी में मृतकों के परिजनों के लिए मुआवजा नाम का एक भी शब्द नहीं है। एक अणे मार्ग वाले अधिकारी क्या देखेंगे ख़बर में..?
५. कई मरीज अस्पतालों में मोटी रकम देकर कोरोना को मात दिए लेकिन उनके लिए एक शब्द भी खर्च नहीं किया गया..!
६. आधा पन्ना भरने के बावजूद पूरी खबर केवल फर्जी प्रचार पर आधारित है। ऐसे पत्रकारों एव प्रकाशित करने वाले ब्यूरो चीफ को माफ़ी मांग ग्रामीणों को भय के माहौल से निकल ने की सख्त जरूरत है और ऐसा नही है की घोड़ासहन रिपोर्टर, आतिश तिवारी की यह पहली गलती है नही है इस तरह की भ्रामक खबर से इन्होंने हमेशा विवादों में रहे हैं।