घोड़ासहन: दोस्तों आज ही के दिन एक वर्ष पूर्व पाँच अवैध हथियार रखनें के आरोप में हमारी गिरफ्तारी गाँधी नगर, घोड़ासहन स्थित हमारे निजी आवास से हुई थी।
आपको पता है कि विगत दस वर्षों से जब हम 8 वी क्लास में पढ़ाई कर रहे थे तबसे ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक शहीद ऐ आज़म भगत सिंह और संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के बतायें रास्ते पर चलते हुए घोड़ासहन, ढाका, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, पटना सहित देश के विभिन्न शहरों में छात्रों-नौजवानों के लिऐ रोजगार के सवाल पर, बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर में छात्र-छात्राओ के समस्याओ के समाधान के लिए,
शिक्षकों के वेतनमान के सवाल पर, बिहार में होने वाली परीक्षाओ के प्रश्नपत्रो की लीक होने के खिलाफ, आंगनबाड़ी कर्मियों- रसोईया कर्मियों-आशा कर्मी – डाटा आॅपरेटर सहित सभी स्कीम वर्करों के सवालों पर, रेलवे के निजीकरन के खिलाफ में गरीबो-दलितो-अल्पसंख्यको पर हुऐ अत्याचार के खिलाफ में, सीएए-एनआरसी जैसे सांप्रदायिक बिल के खिलाफ में, राशन कालाबाजारी के खिलाफ में, बिहार के वार्ड सचिवो के हक दिलाने के लिए, महिलाओं के सुरक्षा के सवालों पर, बीएड के छात्रों के सवालों पर और सभी सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ में छात्र संगठन आइसा और भाकपा माले के बैनर तले आंदोलन करने का, संघर्ष करने का हमारा इतिहास रहा है।
इसी कड़ी में हम पर प्रखंड-अंचल कार्यालय घोड़ासहन पर प्रखण्ड के सभी वृद्ध जन को पेंशन देने, आवास योजना में पच्चीस-पच्चीस हजार की प्रत्येक लाभुकों से किये जा रहे अवैध वसूली बंद करने, शौचालय योजना में प्रत्येक लाभुकों से दो-दो हजार की लूट बंद करने, दाखिल खारिज में प्रत्येक आवेदकों से रिश्वत की मांग करने आदी के मांग के साथ दिए जा रहे धरना के दौरान दलालों के द्वारा हमलोगों पर हमला करा दिया गया था तथा हम पर झूठा मुकदमा भी दर्ज करा दिया गया था जो एक अलोकतांत्रिक कृत्य था, जिसमें प्रखंड विकास पदाधिकारी व अन्य पर माननीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दिल्ली में हमारे द्वारा किए गए मुकदमा भी लंबित है।
हमारे इन सभी राजनैतिक पहलकदमीयों के वजह से मुझे लगातार जन समर्थन मिल रही थी लेकिन हम शासन व्यवस्था और सामंती व संघी मानसिकता वाले लोगों के आँखों में खटकने लगें थे इसिलिए हमे बदनाम करने के लिए और हमारी संघर्ष का रास्ता रोकने के लिए राजनैतिक साजिश करके मुझे आर्म्स एक्ट में जेल भेजा गया था। जेल की सलाख़ों में ज़िस्म क़ैद किए जा सकते हैं, हौसले नहीं। जेल चलें जानें से हम घबरा कर पिछे हटने वाले नहीं हैं संघर्ष में तो जेल जाना-आना लगा रहता है इसलिए अफसोस भी नही है।
जनता के सवालों पर आज हम फिर संघर्ष करने के लिए अपने संकल्प को दोहराते हैं, संघर्ष ही हमारी आकांक्षा हैं और यही हमारा सपना है। जेल के लाइब्रेरी में मुझे कई क्रांतिकारी नेताओ को पढने का मौका मिला तथा कई तरह के संघर्ष करने वाले लोगों से मुलाकात हुई और उनसे प्रेरणा भी मिली, जिससे हमें जनता के लिए उनकी समस्याओं के समाधान को लेकर संघर्ष करने की उर्जा में और भी बढ़ोतरी हुई है। जमानत पर रिहाई के लिए हम अपने पटना उच्च न्यायालय के प्रख्यात वकील वाई वी गिरी साहब को और माननीय उच्च न्यायालय को धन्यवाद् देते हैं।
संघर्षों से लिखा हूँ मैं अपनी जिंदगी का किताब !
आपके साज़िशों से बुझ जाऊँ मैं वो चिराग नहीं !!