
रिपोर्ट= प्रियांशु, नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और जापान की मदद से भारत को आज़ाद कराने का प्रयास किया था। इस दौरान सावरकर के नेतृत्व में तब के तथाकथित ‘हिंदू राष्ट्रवादियों’ ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मदद करने के बजाय ब्रिटिश शासकों का नेताजी की सेना के ख़िलाफ़ साथ दिया था। इतना ही नहीं, सावरकर ने नेताजी के मुक्ति संघर्ष को हराने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ मजबूत किए थे और ब्रिटिश फौजों में भारतीय सैनिकों की भर्ती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हिंदू महासभा ने अंग्रेज़ी शासकों के समक्ष मुकम्मल समर्पण करते हुए ‘वीर’ सावरकर के नेतृत्व में ब्रिटिश फ़ौजों में भर्ती के लिए शिविर लगाए और अंग्रेजों के साथ वफादारी की शर्तों का पालन किया था।

ग़ौरतलब है कि आज प्रधानमंत्री जी और उनके पार्टी के लोग खुद को बड़े फक्र के साथ हिन्दू राष्ट्रवादी बताते है और सावरकर को वीर बताते हुए भारत रत्न देने की बातें करते है।
लेकिन ऐसा अक्सर देखा गया है कि जिन लोगों का अपना कोई गौरवशाली इतिहास नहीं होता है वो दूसरों के इतिहास के अनछुए हिस्से को उठाकर उसे अपना बताने लग जाते है और शायद यही कारण है कि गोडसे को भगवान मानने वाले और सावरकर को वीर बताने वाले फर्जी राष्ट्रवादी लोग गांधी और नेताजी को अपना आदर्श मानने का ढोंग करने लगते है।
बहरहाल, आज ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती है जिन्होंने आईएएस की परीक्षा पास करने के बावजूद अंग्रेज़ो द्वारा दी जाने वाली सरकारी नौकरी पर लात मारते हुए ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ा दी थी।
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