बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट।
बेतिया। चंद्रमा पर मानव के 54 वर्ष सप्ताह पर सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड डॉ शाहनवाज अली डॉ अमित कुमार लोहिया मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट की निदेशक एस सबा पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि
20 जुलाई 1969 को चंद्रमा पर पहली बार मानव के कदम पड़े। नासा के अभियान अपोलो-11 से नील आर्मस्ट्रॉन्ग, माइकल कॉलिन्स एवं एडविन एल्ड्रिन पहली बार चंद्रमा पर पहुंचे। मानव को चंद्रमा पर पहुंचाने की पहली कोशिश के तहत 16 जुलाई 1969 को अमेरिका के केप कैनेडी स्टेशन से अपोलो 11 यान तीन अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर रवाना हुआ था।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि भूतपूर्व सोवियत संघ ने 12 अप्रैल 1961 के दिन विश्व को स्तब्ध कर दिया था। उसने मानव इतिहास में पहली बार अपने एक वायुसैनिक विमान चालक यूरी गगारिन को अंतरिक्ष में भेजने का कारनामा कर दिखाया। अमेरिका तब तक ऐसा कोई चमत्कार नहीं कर पाया था। सोवियत संघ से पिछड़ जाने की इस कड़वाहट को उससे अगड़ जाने की मिठास में बदलने के लिए अमेरिका ने निश्चय किया कि चंद्रमा पर सबसे पहले उसी का कोई नागरिक पहुंचेगा। चंद्रमा ही पृथ्वी का सबसे निकट पड़ोसी होने के नाते हमारे कौतूहल का प्रमुख विषय रहा है। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनडी ने गगारिन की अंतरिक्षयात्रा के एक ही महीने बाद 25 मई 1961 को, अमेरिकी कांग्रेस (संसद) को संबोधित करते हुए कहा,
‘अब समय आ गया है एक लंबी छलांग का। एक बड़े अमेरिकी कार्य का … मैं समझता हूं कि हमारे देश को इस दशक के पूरा होने से पहले ही चंद्रमा पर आदमी को उतारने और उसे पृथ्वी परने सुरक्षित वापस लाने का लक्ष्य प्राप्त कर लेना चाहिये।’
और इसी के साथ स्पर्धा आरंभ हो गई। ‘अपोलो’ नाम के नये अंतरिक्षयानों के द्वारा चंद्रमा तक पहुंचने की एक नयी योजना बनी। अपोलो यान चंद्रमा के पास पहुंच कर उसकी परिक्रमा करते और दो यात्रियों वाले अपने साथ के ‘ल्यूनर मॉड्यूल’ (अवतरणयान) को उसकी सतह पर उतारते। चंद्रमा पर पैर रखने वाले दोनों य़ात्री वहां कुछ अवलोकन-परीक्षण करते और वहां की मिट्टी तथा कंकड़-पत्थर के नमूने जमा कर अपने साथ ले आते। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि एक अंतरिक्षयान एक इकाई के रूप में चन्द्रमा तक सीधी उड़ान भरेगा, उतरेगा और वापिस आयेगा। इसके लिये काफी शक्तिशाली राकेट चाहीये था, जिसे नोवा राकेट का नाम दिया गया था।
1961 में नासा के अधिकतर विज्ञानी सीधी उड़ान के पक्ष में थे। अधिकतर अभियंताओ को डर था कि बाकि पर्यायो की कभी जांच नहीं की गयी है और अंतरिक्ष में यानो का विच्छेदीत होना और पुनः जुड़ना एक खतरनाक और मुश्किल कार्य हो सकता है। लेकिन कुछ विज्ञानी जिसमे जान होबाल्ट प्रमुख थे, चन्द्रमा परिक्रमा केंद्रीत उडानो की महत्त्वपूर्ण भार में कमी वाली योजना से प्रभावित थे। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
जॉन ह्यूबोल्ट ने लूनार आर्बिट रेंडेवू (एलओआर) नज़रिया दिया, जिसमें कहा गया कि एक मदरशिप होगा जो चंद्रमा की कक्षा के चक्कर लगाएगा और एक छोटा अंतरिक्ष यान उससे अलग होकर सतह पर लैंड करेगा। ह्यूबोल्ट के मुताबिक़ इस नज़रिए से समय और ईंधन दोनों बचेगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष उड़ान के विभिन्न चरणों जैसे राकेट के विकास, जांच, टेस्टिंग, निर्माण, अंतरिक्ष यान को खड़ा करना, उल्टी गिनती और प्रक्षेपण सब आसान हो जाएंगे। होबाल्ट ने सीधे सीधे इस कार्यक्रम के निदेशक राबर्ट सीमंस को एक पत्र लिखा। उन्होने इस पर्याय पर पूरा विचार करने का आश्वासन दिया।
इन सभी पर्यायो पर विचार करने के लिये गठित गोलोवीन समिती ने होबाल्ट के प्रयासो को सम्मान देते हुये पृथ्वी परिक्रमा केंद्रीत पर्याय और चन्द्रमा केन्द्रीत पर्याय दोनो के मिश्रीण वाली योजना की सीफारीश की। 11 जुलाई 1962 को इसकी विधीवत घोषणा कर दी गयी थी। 3 अप्रैल 1984 के अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा अंतरिक्ष में कदम रखने वाले पहले भारतीय बने थे । इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि 14 जुलाई 2023 भारत द्वारा भेजा गाया चंद्रयान तृतीय मिशन मानव जीवन को सरल एवं मानव जीवन को सुलभ बनाने में मील का पत्थर साबित होगा। भारत का यह अभियान विश्व के अरबों लोगों के जीवन में नवीन ,ज्ञान विज्ञान एवं ऊर्जा भरने में सफल होगा।