शहर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर फिजूल खर्ची,दिखावा!

शहर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर फिजूल खर्ची,दिखावा!

Bettiah Bihar West Champaran
शहर में अतिक्रमण हटाने के नाम पर फिजूल खर्ची,दिखावा!

अतिक्रमण के नाम पर राशि का हो रहा है बंदरबांट: पूर्व नगर पार्षद।

बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट।

बेतिया (पश्चिमी चंपारण)
बेतिया नगर निगम क्षेत्र में व्यस्तम स्थानों से अतिक्रमण हटाने के काम करना सरकारी राजस्व का चूना लगाना है,यह एक फजुलखर्ची का काम है, उसमे मात्र दिखावा,छलावा होता है,यह तब तक सही नहीं होगा जब तक अतिक्रमण हटाने के बाद ही उस स्थान पर मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में पुलिस बल की तैनाती महीनों दिन तक हो ताकि पुनःदुकानदार अपना दुकान,झोपड़ी,गुमटी ठेला लगाकर अतिक्रमण नहीं करें,अगर कोई दुकानदार पुनः अतिक्रमण करके दुकान,गुमटी झोपड़ी,ठेला लगता है तो उस पर फाईन करके रसीद देकर गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए, ताकि आगे भी इस तरह का अतिक्रमण नहीं कर सकें, अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो अतिक्रमण हटाने की कोई औचित्य नहीं बनता है।निगम प्रशासन इस तरह से अतिक्रमण हटाने का काम मात्र दिखावा,छलावा करता है।निगम प्रशासन द्वारा अतिक्रमण हटाने के बाद भी अगर इस स्थान पर पुनः अतिक्रमण करके दुकानदार दुकान,गुमटी,ठेला,झोपड़ी लगाता है तो अतिक्रमण हटाने में जितना खर्च आता है, उसका रिकवरी नगर निगम प्रशासन केअधिकारियों के साथ कर्मियों से की जाए, क्योंकि इन्हीं लोगों की लापरवाही,अनदेखी के कारण ही पुनःअतिक्रमणमुक्त स्थान कोअतिक्रमण करके दुकानदार,अपना दुकान, गुमटी,ठेला,झोपड़ी लगा लिया जाता है,इस सब को सारी जवाबदेही नगर प्रशासन की है।विगत वर्षों में भी कई बार पावर हाउस चौक से लेकर शोवा बाबू चौक,मीना बाजार, जंगी मस्जिद,मेडिकल कॉलेज एरिया तक अतिक्रमण मुक्त कराया गया,लेकिन मजे की बात यह है कि अतिक्रमण मुक्त कराने से कोई फायदा नजर नहीआया,हमेशा नगर निगम द्वारा अतिक्रमणमुक्त कराया जाता है,लेकिन इसका कुछ फायदा नहीं होता,केवल राजस्व की हानि होती है। अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए लाखों लाख रुपया,पेट्रोल, डीजल,उपकरण,सफाई मशीन,जेसीबी,सफाई कर्मी, पुलिस बल व पदाधिकारी पर खर्च की जाती है,मगर नतीजा ढाक के तीनपात वाली कहावत चरितार्थ होती है। आखिर इसका जवाबदेह कौन होगा।संवाददाता ने जब इन सफाई करने वाले,अतिक्रमण अभियान में लगे नगर निगम के पदाधिकारी,कर्मियों से पूछताछ की गई तो वह कुछ भी बताने से इनकार कर गए, अतिक्रमण हटाने के समय अतिक्रमण के बारे में निगम पदाधिकारी,सिटी मैनेजर, निगम के कर्मी से किसी भी तरह का कोई बयान या फिर सवाल पूछे जाने पर कतराते हुए भागते नजर आये।
नगर निगम प्रशासन के द्वारा अतिक्रमण हटाने का काम तो सराहनीययोग्य पहल है,मगर कब,जब इसके बाद वाली स्थिति पर नगर निगम प्रशासन ध्यान दे,और यह केवल उनकी लापरवाही,अनदेखी के कारण ही पुनःदुकानदार अपना दुकान,गुमटी,ठेला,झोपड़ी लगा लेते हैं।संवाददाता को विश्वसनीय सूत्रों से पता लगा है कि यह सभीअतिक्रमण करने वाले दुकानदार,नगर निगम प्रशासन के कर्मियों, पदाधिकारी से मिलकर,लेनदेन करके पुनःअतिक्रमण करके अपनी दुकानों को लगा लेते हैं, अतिक्रमण मुक्त करने में जो राशि नगर निगम की खर्च होती है,वह नहीं निकाल पाती है,इसका निकालने का उपाय यही है कि नगर निगम के प्रशासनिक पदाधिकारी, अतिक्रमणमुक्त करने में लगे सफाई कर्मियों,कर्मियों के वेतन से इस राशि की रिकवरी की जाए,या उसअतिक्रमण मुक्त स्थान पर मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में पुलिस बल की तैनाती की जाए ताकि पुनः दुकानदार अपनी दुकानों को अतिक्रमण करके नहीं लगा सके।इनअतिक्रमणमुक्त स्थानों पर बड़े-बड़े नाले बने हुए हैं,जो पूरे तौर पर भरे हुए हैं,कभी सफाई नहीं होती है,जिसके कारण बरसात के दिनों में जल जमाव हो जाता है।नगर निगम के द्वारा नाला सफाई की मद में जो राशि वार्डवार स्वीकृत होती है,इसका इस्तेमाल नाला की सफाई में खर्च नहीं होती है बल्कि आपस में स्वीकृत राशि का बंदरबांट करके वारान्यारा कर दिया जाता है,इसकी विधिवत स्थलीय जांच होने के बाद ही इसकी भुगतान की प्रक्रिया होनी चाहिए,तभी जाकर इसमें सुधार की गुंजाइश होगी,अनयथा इसी तरह राशि का बंदरबांट होता रहेगा,सफाई नाम की कोई चीज नहीं रहेगी।स्थानीय पूर्व नगर पार्षद,वार्ड नंबर15 सह- जदयू नेत्री-सह-अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ के बिहार प्रदेश की कार्यकारीअध्यक्ष, सुरैया सहाब ने उपर्युक्त बातों की जानकारी दी है।

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