किसान महासभा ने धरना स्थल पर ही 13 जनवरी लोहड़ी के पुर्ववेला पर तीनों कृषि कानून को किया दहन गणतंत्रत दिवस पर 26 जनवरी को किसान बचाओं देश बचाओं दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

किसान महासभा ने धरना स्थल पर ही 13 जनवरी लोहड़ी के पुर्ववेला पर तीनों कृषि कानून को किया दहन गणतंत्रत दिवस पर 26 जनवरी को किसान बचाओं देश बचाओं दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

Bihar West Champaran

बेतिया, न्यूज़ ब्यूरो वकीलूर रहमान खान, तीनों कृषि कानून, बिजली बिल 2020 को रद्द करने, सभी किसानों, बाटाईदार किसानों के धान MSP  पर यानी 1888 रूपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदने की गारंटी और गन्ना का 400 रूपये प्रति क्विंटल मूल्य घोषित करने, गन्ना का बकाया का भुगतान करने की मांग पर आज आठवें दिन भी जिला समाहरणालय गेट पर अनिश्चित कालीन धरना जारी रहा, धरना को संबोधित करते हुए किसान महासभा के जिला सचिव इन्द्र देव कुशवाहा ने धरना को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के लोकतांत्रिक और शांतिपूर्वक विरोध करने के अधिकार को मान्यता दी है। कोर्ट ने किसान आंदोलन के खिलाफ दायर की गई बेबुनियाद और शरारत पूर्ण याचिकाओं पर कान नहीं दिया जिन्होंने किसानों के मोर्चे को उखाड़ने की मांग की थी।

तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर स्टे लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता हु। यह आदेश हमारी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक है। लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है। हमारा आंदोलन इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है। इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते।

किसान महासभा के जिला अध्यक्ष सुनील कुमार राव ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से  कोई संबंध नहीं है। चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी है या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है। आज कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं। यह अफसोस की बात है कि देश के सुप्रीम कोर्ट में अपनी मदद के लिए बनाई इस कमेटी में एक भी निष्पक्ष व्यक्ति को नहीं रखा है।

 

इसलिए हम एक बात फिर स्पष्ट करते हैं कि घोषित आंदोलन के कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं है। हमारे सभी पूर्व घोषित कार्यक्रम यानी का कार्यक्रम, 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाने, 20 जनवरी को श्री गुरु गोविंद सिंह की याद में शपथ लेने और 23 जनवरी को आज़ाद हिंद किसान दिवस, 25 जनवरी को मशाल जूलूस और गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को किसान बचाओं देश बचाओं दिवस,30 जनवरी को मानव जंजीर बनाने का का कार्यक्रम होगा

मजदुरो के नेता रविन्द्र कुमार रवि ने धरना को संबोधित करते हुए कहा कि तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द करवाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी हासिल करने के लिए किसानों का शांति पूर्वक एवं लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रहेगा।

हारून गद्दी ने कहा कि

किसानों का इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट न जाने का उनका फैसला निश्चित ही इस आशंका से प्रेरित है कि वहां उनके साथ इंसाफ नहीं होगा।सवाल है कि आखिर सरकार किस आधार पर आश्वस्त होकर किसानों को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दे रही है और किसान क्यों अदालती कार्यवाही का हिस्सा बनने से इंकार कर रहे हैं? दरअसल, पिछले दो-तीन वर्षों के दौरान तमाम महत्वपूर्ण मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले आश्चर्यजनक रूप से सरकार के मनमाफिक आए हैं। भारतीय किसान यूनियन के राज्य नेता नेशार अहमद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पर संदेह सवभाविक है इस सिलसिले में राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद विवाद, तीन तलाक, रॉफेल विमान सौदा, इलेक्टोरल बॉन्ड, पीएम केयर्स फंड, नए संसद भवन और सेंट्रल विस्टा जैसे मामले उल्लेखनीय हैं। कई मामले ऐसे भी हैं, जिन्हें सरकार लटकाए रखना चाहती है, उन पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई तक शुरू नहीं की है। यही नहीं, कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के मामले भी सरकार ने अपने बचाव में जो कुछ गलत बयानी की उसे सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया था।

इस मौके पर जवाहर प्रसाद, गुलरेज खा, फुलदेव कुशवाहा, धर्म कुशवाहा, शेख जुलकर नैन, शेख समाकल, पाना लाल साह, रमेश कुशवाहा, जयनारायण कुशवाहा, लक्ष्मण राम, तृवेणी मुखिया, भुखले राम, रामचंद्र पासवान, अनवर खा, मनउधर खा, सीपीआई नेता राधामोहन यादव, जवाहर प्रसाद, सुनील कुमार यादव इत्यादि मौजुद थे।

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