संपादकीय प्रियांशु: पिछले तीन दशक से बिहार का मुसलमान आंख मूंद कर लालू प्रसाद यादव के पीछे चलता रहा.. इसकी कई सारी वजहें होंगी, लेकिन सबसे बड़ी वजह है शहाबुद्दीन..! वही शहाबुद्दीन जिसे कई लोग बाहुबली बताते है, कुछ अपराधी बताते है, लेकिन बिहार के करोड़ों अल्पसंख्यक आबादी के लिए वो मसीहा, रॉबिन हुड है।
आज मुसलमानों का एक बड़ा वोट बैंक राजद के साथ है तो उसकी सबसे बड़ी वजह डॉ शहाबुद्दीन साहब है। वही शहाबुद्दीन जो लालू की परछाई रहे, हनुमान रहे, पालनहार रहे, एम-वाई समीकरण के बराबर के हिस्सेदार रहे लेकिन फिर भी ईमानदार रहे, आजीवन वफादार रहे।
जब लालू प्रसाद जेल में थे तब राबड़ी देवी की कमान में आई बिहार की गद्दी को शहाबुद्दीन ने ही संभाला था, नितीश की हफ्ते भर की सरकार अपने बाहुबल से गिराई थी। जदयू का खुला ऑफर ठुकराया था, सारे जुल्म माफ़ हो जाते, जेल भी नहीं जाना पड़ता लेकिन वफादारी ऐसी कि लालू को ही अपना नेता बताया, ग्यारह साल बाद जब जेल से छूटे तो महागठबंधन बन चुका था, बाबजूद इसके नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताया। जमानत ख़ारिज कर दी गई लेकिन ज़मीर से सौदेबाजी नहीं हुई।
लेकिन आज सौदबाजी हो गई। उनकी न्यायिक हत्या हुई या मौत ये रहस्य बन गया। वो कोविड से मरे या मारा गया किसी को नहीं मालूम। एम्स क्यों नहीं भेजा गया ये भी बड़ा सवाल है और तेजस्वी यादव चुप है, ये सबसे बड़ा सवाल है। तेजस्वी भले ही कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन चुप भी तो नहीं रहना चहिए था। खैर, सवाल तो अब भी बहुत है। लेकिन इन्हीं सवालों के बीच उन्हें दिल्ली आईटीओ में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। उनकी लाश सिवान की दो गज जमीन मांग रही थी, उनका परिवार अपना अधिकार मांग रहा था, एक बेटा अपने बाप की लाश मांग रहा था। लेकिन कुछ नहीं मिला।
शाहबुद्दीन यदि अपराधी भी थे तो उनके परिवार का क्या दोष था..? हिना और ओसामा साहब का क्या दोष था..? अगर देश का कानून सबके लिए बराबर है तो गुजरात के दोनों कातिल क्यों बाहर घूम रहे है, राजा भईया, पप्पू यादव को कोई क्यों नहीं जेल में डालता..? योगी आदित्यनाथ की फाइलें क्यों बंद कर दी जाती है..?
शहाबुद्दीन अपराधी छवि के नेता रहे, बाहुबली भी रहे, उनपर हत्या का भी आरोप था लेकिन सजा मिली तो केवल मुस्लमान होने की और सज़ा भी एसी की उनके लाश के साथ भी नृशंस व्यवहार हुआ।
खैर, साम्प्रदायिक ताकतों के सीने पर चढ़कर ललकारने वाले शेर-ऐ-बिहार को खिराजे अकीदत।