बेतिया/ न्यूज़ ब्यूरो वकीलुर रहमान खान
आज दिनांक 3 अगस्त 2021 को विश्व दुनिया के दूसरे सबसे बड़े ग्रंथालय खुदा बख्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी के संस्थापक मौलाना खुदा बख्श खान की याद में सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन द्वारा दो दिवसीय विजुअल कार्यक्रम का आयोजन 2 अगस्त से 3 अगस्त 2021 को किया गया ,इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेसडर सह सचिव डॉ0 एजाज अहमद एवं डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि खुदाबक़्श ओरियेन्टल लाइब्रेरी संस्थापक मौलाना खुदा बख्श खान का 3 अगस्त 1908 ई0 को निधन हुआ था उनका सारा जीवन सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित रहा ,
खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी भारत के सबसे प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है जो बिहार प्रान्त के पटना शहर में स्थित है। मौलवी खुदाबक़्श खान के द्वारा संपत्ति एवं पुस्तकों के निज़ी दान से शुरु हुआ यह पुस्तकालय देश की बौद्धिक संपदाओं में काफी प्रमुख है। भारत सरकार ने संसद में 1969 में पारित एक विधेयक द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में प्रतिष्ठित किया। यह स्वायत्तशासी पुस्तकालय जिसके अवैतनिक अध्यक्षबिहार के राज्यपाल होते हैं, पूरी तरह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अनुदानों से संचालित है।
खुदाबक़्श पुस्तकालय की शुरुआत मौलवी मुहम्मद खुदाबक़्श खान जो छपरा के थे उनके निजी पुस्तकों के संग्रह से हुई थी। वे स्वयं कानून और इतिहास के विद्वान थे और पुस्तकों से उन्हें खास लगाव था। उनके निजी पुस्तकालय में लगभग चौदह सौ पांडुलिपियाँ और कुछ दुर्लभ पुस्तकें शामिल थीं। 1876 में जब वे अपनी मृत्यु-शैय्या पर थे उन्होंने अपनी पुस्तकों की ज़ायदाद अपने बेटे को सौंपते हुये एक पुस्तकालय खोलने की ईच्छा प्रकट की। इस तरह मौलवी खुदाबक़्श खान को यह संपत्ति अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुई जिसे उन्होंने लोगों को सम्रपित किया।
खुदाबक़्श ने अपने पिता द्वारा सौंपी गयी पुस्तकों के अलावा और भी पुस्तकों का संग्रह किया तथा 1888 में लगभग अस्सी हजार रुपये की लागत से एक दोमंज़िले भवन में इस पुस्तकालय की शुरुआत की और 1891 में 29 अक्टूबर को जनता की सेवा में समर्पित किया। उस समय पुस्तकालय के पास अरबी, फारसी और अंग्रेजी की चार हजार दुर्लभ पांडुलिपियाँ मौज़ूद थीं।
मौलवी खुदाबक़्श खान पटना के प्रसिद्ध खुदाबक़्श लाइब्रेरी के संस्थापक थे जिसे इस्तांबुल सार्वजनिक ग्रंथालय (तुर्की) के बाद दुनिया के दूसरा सबसे बड़े ग्रंथालय के रूप में देखा जाता है। आज यह राष्ट्रीय महत्व की संस्था मान ली गई है क्योंकि 1969 में संसद के एक अधिनियम द्वारा ग्रंथालय का नियंत्रण भारत सरकार अपने हाथ में ले चुकी है। यहाँ पर उर्दू, फ़ारसी और अरबी की हजारों पांडुलिपियाँ मौजूद हैं।
खुदाबक़्श खान का जन्म 2 अगस्त 1842 को सीवान के क़रीब उखाई गाँव में हुआ था।
उनके पूर्वज मुगल राजा आलमगीर की सेवा में थे। उनके पिता पटना में एक प्रसिद्ध वकील थे पर उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा किताबें ख़रीदने में जाता था। वे ही पटना में खुदाबख्श को लेकर आये थे। खुदाबक़्श ने 1859 में पटना हाई स्कूल से बहुत अच्छे अंकों के साथ मैट्रिक पास की। उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता भेज दिया। लेकिन वह नए वातावरण में खुद को समायोजित नहीं कर सके और वह अक्सर स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित रहे। बाद में उन्होंने 1868 में अपनी कानून की शिक्षा पूरी की और पटना में अभ्यास शुरू कर दिया। कम समय में ही वह एक प्रसिद्ध वकील बन गए।
इस अवसर पर डॉ एजाज अहमद डॉक्टर शाहनवाज अली ने कहा कि 1876 में खुदाबक़्श के पिता का देहान्त हो गया मगर पिता ने वसीयत की कि उनका बेटा 1700 के आसपास पुस्तकों के संग्रह बढ़ाने और इसे एक सार्वजनिक ग्रंथालय स्थापित करने का प्रयास करे।
1877 में वे पटना नगर निगम के उपाध्यक्ष बन गए। उन्हें 1891 में उन्हें ‘खान बहादुर’ के खिताब से सम्मानित किया गया। शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 1903 में उन्हें उस समय “सीआईबी” के शीर्षक के साथ सम्मानित किया गया।
ग्रंथालय का उद्घाटन 1891 में बंगाल के उपराज्यपाल सर चार्ल्स इलियट के द्वारा किया गया। उस समय इस पुस्तकालय में लगभग 4000 हाथ से लिखी गई पुस्तकें थीं।