जल,जीवन और हरियाली’ केवल कागजों पर!.. वाल्मीकि प्रोजेक्ट में आग लगना क्या षड्यंत्र है ?
रामनगर से ठाकुर रमेश शर्मा के सहयोग से बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट !
बेतिया/ हर्नाटांड़( पश्चिमी चंपारण) प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी वन माफियाओं द्वारा अगलगी की घटना को अंजाम देकर अधजली लकड़ियों को काटकर कुछ तो कोयला बनाया जाता है जो कपड़ा इस्त्री करने वाले धोबियो को सप्लाई किया जाता है तथा कुछ कम जले लकड़ियों को वन्य तस्कर का टकर औने पौने दाम पर बेच देते है।इस पेशा से कुछ चंद भ्रष्ट अधिकारी मालेमाल हो रहे है तथा जंगल कंगाल हो रहा है।
वीटीआर जंगल हरनाटांड रेंज, तरूअनवा में लगी भीषण आग लगने से अफरा तफरी मची हुई है। आग की लपटें ईतनी भयावह है कि 1 किलोमीटर दूर तक धु -धुकर जल रहा है। वीटीआर सदाबहार जंगल मे और कई हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया…. जंगलों में गर्मी के दिनों में आग लगने का कारण है। गर्मी दिनों में अत्याधिक गर्मी में पेड़ों के बीच घर्षण होता है जिससे उसका तापमान बाढ जाता है और धीरे -धीरे जंगल की सुखी घास और सुखी पत्तियाँ घर्षण करती हुई पेड़ की टहनियाँ अपने प्रज्वलन ताप पर पहुँच जाती है, ईसलिए जंगलो में अपने आप आग लग जाती है … जंगल में आग लगने को (दावानल) कहते हैं।
इस समय भारत के वनक्षेत्रों में बजट मजबूत किया गया है फिर भी मातहत अधिकारी घरों के अंदर सो कर ac में दिन काट रहे है तथा उधर वन माफिया गुल खिला रहे है।जिसे शीघ्र सुप्रीम कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए तभी जल,जंगली जीव तथा पर्यावरण सुरक्षित रहेगी तथा मानव का अस्तित्व खतरे से बच पाएगा। ऐसा सोच महान समाजसेवी भाई शेख औरंगजेब ढूंढके साथ गोला बाजार निवासी अखलाक अहमद मानवाधिकार कार्यकर्ता का कहना है।
ऐसे ही दशा भिखना ठोरी के वन क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है।जहाँ वन धूं-धूं कर जलते रहती है और वन विभाग के अधिकारियों को कोई फर्क नही पड़ता।