सत्याग्रह रिसर्च फाऊंडेशन, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों ने बेतिया राज के हजारों वर्षों के ऐतिहासिक महत्व के दुर्लभ पांडुलिपियों एवं दस्तावेजों को कंप्यूटराइज कर बेतिया के गौरवशाली इतिहास को संरक्षित करने की पुनः की सरकार मांग।
बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट!
बेतिया ( पश्चिमी चंपारण)
आज दिनांक 15 अक्टूबर 2023 को सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन के सभागार सत्याग्रह भवन में ऐतिहासिक बेतिया राज के हजारों वर्ष पुराने दुर्लभ पांडुलिपियों एवं दस्तावेजों को कंप्यूटराइज कर संरक्षण प्रदान करने के लिए सरकार से मांग करते हुए कहा कि राष्ट्रीय संग्रहालय बनाकर बेतिया राज के लगभग 5000 वर्षों से 1000 वर्ष पूर्व के ऐतिहासिक दुर्लभ पांडुलिपियों एवं महत्वपूर्ण दस्तावेजों को कंप्यूटराइज्ड संरक्षण प्रदान किया जाए ताकि नई पीढ़ी के लिए बेतिया की गौरवशाली इतिहास को बचाया जा सके। इस अवसर पर रिसर्च फेलो सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाऊंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड ,डॉ शाहनवाज अली, डॉ अमित कुमार लोहिया, वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल हक ,डॉ महबूब उर रहमान ,पश्चिम चंपारण कला मंच की संयोजक शाहीन परवीन ने संयुक्त रूप से कहा कि सरकारी एवं सामाजिक उदासीनता के कारण नष्ट हो रही है ऐतिहासिक महत्व की संपत्तियां एवं बेतिया राजमहल। यूं तो बेतिया राज के महल में अभी महत्व की करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो रही है। बेतिया राज के अंतिम महाराज महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह का 26 मार्च 1893 को 39 वर्ष की अल्पायु में निधन हो गया था। महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह की मृत्यु के बाद महारानी शिव रतन कुवर ने लगभग 3 वर्षों तक मार्च 1893 से 24 मार्च 1896 ई०तक अपने मृत्यु के समय तक बेतियां राज के गद्दी को सुशोभित किया। बेतिया राज के अंतिम महाराज महाराजा हरिंद्र किशोर सिंह की पहली पत्नी महारानी शिव रतन कुमार की मृत्यु के बाद 1896 मार्च से महारानी जानकी कुंवर ने बेतिया राज का बागडोर लगभग 26 वर्ष की आयु में अपने हाथ में लिया।लगभग 1 वर्षों तक बेतिया राज के महारानी के रूप में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंदिरों धर्मशालाओ , विभिन्न धर्म के शिक्षण संस्थाओं के लिए जमीन उपलब्ध कराई।उन्होंने बेतिया में उच्च शिक्षा एवं उत्तम कोठी के स्वास्थ्य सेवाओं को बहाल करने के लिए उच्च श्रेणी के मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के लिए एक मोटी रकम मुजफ्फरपुर स्थित बैंक में जमा कराई थी। महारानी का यह सपना लगभग 110 वर्षों बाद पूरा हुआ। महारानी जानकी कुमार बिहार की वह पहली महिला हैं जिन्हें लगभग 50 वर्षों तक 1897 से 1947 तकअंग्रेजों का यातनाओं एवं उत्पीड़न का शिकार रही। बेतिया राज के अंग्रेज अफसर मिस्टर जे आर लोविस एवं मिस्टर गिब्बन ने बेतिया राज की संपत्ति की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन दिनों कोलकाता से जरदोजी वर्क वाले कीमती वस्त्र बेतिया राजमहल तक पहुंचाने थे। उसकी कीमत लाखों में थी। जिसमें सोने चांदी एवं हिरो के नग जड़े हुए थे। उसे आज भी बेतिया राज के तहखाना में रखा गया है। संभव है कि इतने वर्षों बाद उसकी कारीगरी नष्ट हो गई हो ।अफगानिस्तान से मंगाई नीले रंग का लाजवर्द स्टोन भी मिस्टर गिब्बन की मदद से महारानी जानकी कुंवर के दरबार की शोभा बना था। अफगानिस्तान से आए इस दुर्लभ हीरे के कारण महारानी जानकी कुंवर पूरे भारतवर्ष के राजा महाराजाओं के आंख की किरकिरी बन गई। एक षड्यंत्र के माध्यम से महारानी को दिमागी तौर पर अस्वस्थ घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही बेतिया राज को कोर्ट आफ वर्डस के अंतर्गत कर दिया गया लगभग विगत 126 वर्षों से बेतिया राज कोर्ट आफ वॉडर्स के अंतर्गत सरकारी उदासीनता का शिकार है। राजघराने में स्थिति मुहाफिज खाना (रिकॉर्ड रूम )की रिकार्डो के माध्यम से बेतिया राज के 5000 वर्ष से 1000 वर्ष पूर्व के अनमोल इतिहास को जाना जा सकता है। हाथी दांत से बनी वस्तुएं एवं अति दुर्लभ पांडुलिपियां धूल खा रही हैं। बेतिया राज के शीश महल में पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व की कई चीजे हैं। इसमें राजघराने का संपूर्ण फर्नीचर, राजा के जमाने के हथियार ,राजा एवं राजा के अतिथियों के खाने की दुर्लभ टेबल , हाथी दांत जड़ें कुर्सी, अष्टधातु की थाली ,पूरे राजमहल की लाइटिंग का सामान , हजारों वर्ष पुराने दुर्लभ लालटेन, देवी देवताओं की दुर्लभ मूर्तियां, इंग्लैंड से मंगाया गया झालर, सजावट के अन्य सामान, खजाने का बॉक्स, राजा की पालकी, रानी की डोली ,राजा का ऐतिहासिक खंजर, प्राचीन तलवार, अतिथियों का खाना बनाने के लिए बड़े-बड़े दर्जन भर हांडी, हिरण के सिंग, हाथी दांत से बनी विभिन्न दुर्लभ वस्तुएं एवं अन्य सामग्री हैं ।डॉ एजाज अहमद रिसर्च फेलो , इतिहास विभाग,बिहार विश्वविद्यालय, डी शाहनवाज अली, शोधार्थी इतिहास विभाग बिहार विश्वविद्यालय ,डॉ अमित कुमार लोहिया एवं वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक मदर ताहिरा चेटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल उल हक ने संयुक्त रूप से कहा कि सरकारी एवं सामाजिक उदासीनता के कारण हजारों वर्षों के ऐतिहासिक पांडुलिपियों एवं दुर्लभ दस्तावेजों को कंप्यूटराइज का संरक्षित किया जा सकता है।