देश की स्वाधीनता में ऐतिहासिक मीना बाजार बेतिया के व्यवसायी स्वतंत्रता सेनानियों एवं चंपारण वासियों की रही अहम भूमिका।

देश की स्वाधीनता में ऐतिहासिक मीना बाजार बेतिया के व्यवसायी स्वतंत्रता सेनानियों एवं चंपारण वासियों की रही अहम भूमिका।

Bettiah Bihar West Champaran

महान स्वतंत्रता सेनानी बैकुंठ शुक्ल, अमर शहीदो एवं स्वतंत्रता सेनानियों को सत्याग्रह रिसर्च फाऊंडेशन , मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट, मीना बाजार व्यवसायी संघ द्वारा दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि।

बेतिया से वकीलुर रहमान खान की‌ ब्यूरो रिपोर्ट!

बेतिया पश्चिमी चंपारण)
सत्याग्रह रिसर्च फाऊंडेशन, मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट, मीना बाजार व्यवसायी संघ एवं विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा ऐतिहासिक मीना बाजार सेन्टर मे महात्मा गांधी ,राजेंद्र प्रसाद, पीर मोहम्मद मुनीश, शेख गुलाब, बतख मियां अंसारी ,अकलू दीवान, शीतल राय , चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु ,सुखदेव, बैकुंठ शुक्ल एवं ऐतिहासिक मीना बाजार बेतिया के व्यवसायी को श्रद्धांजलि अर्पित जिन्होंने भारत की स्वाधीनता में अहम भूमिका निभाई। इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय पीस एंबेस्डर सह सचिव सत्याग्रह रिसर्च फाउंडेशन डॉ एजाज अहमद अधिवक्ता, डॉ सुरेश कुमार अग्रवाल चांसलर प्रज्ञान अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय झारखंड, डॉ शाहनवाज अली, मुकेश कुमार, मीना बाजार व्यवसायी संघ के सचिव रेयाज अहमद ,डॉ अमित कुमार लोहिया ,वरिष्ठ पत्रकार सह संस्थापक मदर ताहिरा चैरिटेबल ट्रस्ट डॉ अमानुल हक एवं डॉ महबूब उर रहमान ने संयुक्त रूप से कहा कि आज ही के दिन आज से 91 वर्ष पूर्व 9 नवंबर 1932 को महान स्वतंत्रता सेनानी बैकुंठ शुक्ल एवं ऐतिहासिक मीना बाजार के व्यवसायी सहयोगियों की मदद से अंग्रेजी हुकूमत के सरकारी गवाह बने फणींद्र नाथ घोष की महान स्वतंत्रता सेनानी बैकुंठ शुक्ल ने हत्या कर दी थी। इसमें मीना बाजार की व्यवसाययों की आम भूमिका रही।भारत के एक राष्ट्रवादी एवं क्रांतिकारी थे। वे योगेन्द्र शुक्ल के भतीजे थे जो हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापकों में से एक थे।इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
सेंट्रल एसेम्बली बम कांड में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 1931 में फांसी की जो सजा हुई थी । वैसे तो फणींद्र नाथ घोष महान क्रांतिकारी थे ,लेकिन अंग्रेजों के यातनाओ से टूट गये थे। आखिरकार अंग्रेजों के अत्याचार से तंग आकर अपने साथियों के नाम बताने पर मजबूर हूए ।बेतिया निवासी फणीन्द्र नाथ घोष के इकबालिया गवाह के रूप में दिए गए बयान के कारण बैकुंठ शुक्ल उनकी हत्या की थी। फणीन्द्रनाथ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संस्थापक सदस्य थे । पंजाब एवं देश के विभिन्न राज्यों के क्रांतिकारी अक्सर बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों को यह पत्र लिखा करते थे । इस‌ से बिहार के स्वतंत्रता सेनानी काफी शर्मिंदा होते थे । 1932 के उत्तरार्ध में पंजाब एवं देश के अन्य क्रांतिकारियों ने यह संदेश भेजकर बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों से पूछा कि इस कलंक को धोओगे या ढोओगे? यह कथन बड़ा गूढ़ अर्थ वाला था। इसे लेकर सशस्त्र क्रांतिकारी पार्टी सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की आपात बैठक हुई। फनीन्द्रनाथ घोष की हत्या के लिये लगाई गई गोटी बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा सिंह के नाम निकली। अब दोनों फणीन्द्र घोष की तलाश में निकल पड़े। पता चला कि वह बेतिया में ही कहीं छुपा है। साइकिल से ऐतिहासिक मीना बाजार बेतिया सेंटर में पहुंचकर उसे मार गिराया और साइकिल एवं धोती बेतिया के ऐतिहासिक बड़ा रमना में )जहां आज महात्मा गांधी सभागार है)छोड़ कर भाग निकले। यह घटना तब घटी शाम 5:00 बजे तब फणीन्द्र नाथ घोष अपने मित्र गणेश प्रसाद गुप्त से बात कर रहा था। गणेश ने बैकुंठ शुक्ल को पकड़ने का प्रयास किया तो उस पर भी प्रहार किये गये। फणीन्द्र नाथ घोष का अन्त 17 नवंबर को हुआ, जबकि गणेश प्रसाद 20नवबर 1932 को मर गया। जाँच से इस बात की पुष्टि हुई कि फनीन्द्रनाथ घोष की हत्या बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह ने की है।
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि फणीन्द्र की मौत से ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गयी थी। जोर-शोर से हत्यारों की तलाश शुरू हुई। अंग्रेज सरकार ने बैकुंठ शुक्ल की गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा कर दी। 5 जनवरी 1933 को कानपुर से चंद्रमा सिंह की गिरफ्तरी हुई। 06 जुलाई 1933 को सोनपुर के गंडक पुल पर अंग्रेजों की फौज ने जबरदस्त घेराबंदी करते हुए बैकुंठ शुक्ल को पकड़ लिया। गिरफ्तारी के समय उन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाये। मुजफ्फरपुर में दोनों पर फणीन्द्र नाथ घोष की हत्या का मुकदमा चलाया गया। उन्होंने चंद्रमा सिंह को बचाते हुए हत्या की सारी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली। 23 फरवरी 1934 को सत्र न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए बैकुंठ शुक्ल को फांसी की सजा दे दी, जबकि चंद्रमा सिंह को दोषी नहीं पाते हुए छोड़ दिया गया। बैकुंठ शुक्ल ने सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय में अपील की, लेकिन 18 अप्रैल 1934 को हाईकोर्ट ने सत्र न्यायाधीश के फैसले की पुष्टि कर दी।
13 मई को रात भर वे देश भक्ति के गीत गाते रहे थे। अन्य कैदियों ने भी रात में खाना नहीं खाया। 14 मई 1934 को गया जेल में बैकुंठ शुक्ल को फांसी दे दी गयी। उन्होने “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजू-ए- कातिल में है” गाते हुए फांसी का फंदा चूम लिया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि
बिहार राज्य सरकार ने बैकुण्ठ शुक्ल की आदमकद प्रतिमा मुजफ्फरपुर में लगाई है। इस अवसर पर वक्ताओं ने उनके नाम पर गया केन्द्रीय जेल का नाम रखने एवं उनके सम्मान में एक विश्वविद्यालय बेतिया में स्थापित करने की मांग की।

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