इनरवा के उर्दू विद्यालय के दो कमरे में होती है चार सौ बच्चों की आज भी पढ़ाई!

इनरवा के उर्दू विद्यालय के दो कमरे में होती है चार सौ बच्चों की आज भी पढ़ाई!

Bettiah Bihar West Champaran

विद्यालय में चार सौ बच्चें और नौ शिक्षक पर छात्र-छात्राओं की क़ोई व्यवस्था नहीं!

बेतिया से वकीलुर रहमान खान की‌ ब्यूरो रिपोर्ट!

इनरवा ( पश्चिमी चंपारण )
यह सुनने में भले अटपटा लग रहा है लेकिन,चौंकाने वाला यह तथ्य सही है। मैनाटांड अंचल अंतर्गत राजकीय प्राथमिक उर्दू विद्यालय इनरवा बजार में दो कमरों में चार सौ बच्चों की पढ़ाई होती है। हैरत की बात यह है कि इसके बाद भी विभाग मौन साधे हुए है। असल में, विद्यालय में चार सौ बच्चे नामांकित हैं और उनके पढ़ने के लिए वहां महज दो कमरे हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि वहां बच्चे किस परिस्थिति में शिक्षा ग्रहण कर रहे होंगे। दरअसल, भवन के अभाव में यहां बच्चों को खुले आसमान के नीचे पढ़ना पड़ता है।

या यूं कहें कि भवन के अभाव में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। बावजूद इसके विभाग पूरी तरह अनजान बना हुआ है। बच्चों के अनुपात में भवन नहीं रहने के कारण बच्चे खुले आसमान में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। स्थापना के बाद से झेल रहा भवन का अभाव जाहिर हो, विद्यालय की स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी, जिसके बाद से यह विद्यालय भवन का अभाव झेलता रहा है। शिक्षकों की माने तो विद्यालय में भवन की कमी का मुख्य कारण विद्यालय के नाम में उर्दू का जुटना है। उर्दू के जुटे रहने से विभाग इस पर ध्यान नहीं देता। लिहाजा, बच्चों को विवश होकर किसी तरह पढ़ाई करनी पड़ती है।

बरसात में होती है सबसे ज्यादा परेशानी

विद्यालय के प्रधानाध्यापक प्रेम कुमार ने बताया कि भवन का अभाव बारिश के दिनों में सबसे अधिक खलता है। गर्मी में तो फिर भी बच्चे बाहर खुले आसमान तले पढ़ लेते हैं लेकिन, बरसात के दिनों में विवश होकर बच्चों की छुट्टी करनी पड़ती है। शिक्षकों ने संबंधित अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है।

विद्यालय में कुल 9 शिक्षक मौजूद है

प्रधानाध्यापक ने बताया की विद्यालय में सभी सुविधा मौजूद है, सिवाय भवन के कुल 9 शिक्षक है। सभी बच्चों को ससमय भोजन उपलब्ध है। बच्चों की शिक्षा बहुत की बेहतर है। सभी बच्चें ड्रेस में आते है।

विभाग में कई बार शिकायत की जा चुकी है

प्रधानाध्यापक प्रेम का कहना है कि मैनाटांड बीईओ के पास आवेदक दिया जा चुका है। उसके बाद बेतिया डीईओ के पास भी लेटर जा चुका है। कई बार तो जिला से इंजीनियर आकर भूमि का मापी भी कर चुका है, पर विद्यालय का कमरा जस का तस है। बच्चों की बेवस्था में कोई पहल नहीं होती है।

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