*छठ महापर्व की तैयारियां आरंभ 8 को नहाए खाए के साथ आरंभ होगा 36 घंटो का निर्जला व्रत नहाए खाए को कद्दू भात खरना मे खीर और प्रसाद में ठेकुआ का विशेष महत्व*

*छठ महापर्व की तैयारियां आरंभ 8 को नहाए खाए के साथ आरंभ होगा 36 घंटो का निर्जला व्रत नहाए खाए को कद्दू भात खरना मे खीर और प्रसाद में ठेकुआ का विशेष महत्व*

Bettiah Bihar

*न्यूज़ ब्यूरो वकीलुर रहमान खान*

*बेतिया* संपूर्ण जिले में दीपाली समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारियां आरंभ हो गई है 4 दिन तक चलने वाला छठ एक साधारण पूजा नहीं बल्कि महापर्व है जिसकी शुरुआत नहाए खाए के साथ 8 नवंबर को होगा दूसरे दिन 9 नवंबर को खरना पूजा आयोजित होगा जिसके अगले दिन डूबते और उगते सूर्य को अर्ध देकर छठ पूजा का समापन होगा 10 नवंबर को पहला और दू 11 नवंबर को दूसरा अर्ध होगा

*छठ पूजा की है क्या परंपरा*

छठ पर्व के करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखंड से हुई जो अब देश विदेश तक फैल चुकी है अंग देश की महाराज कण सूर्य देव के उपासक इसलिए परंपरा के अनुसार इस इलाके पर सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव है

 

*जाने क्यों होती है सूर्य की विशेष उपासना*

कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है इसलिए सूर्यदेव की विशेष उपासना की जाती है ताकि स्वास्थ्य स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें सृष्टि तिथि का संबंध संतान की आयु से होता है इसलिए सूर्य देव और सृष्टि जी पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों की प्राप्ति हो जाती है विज्ञान के अनुसार इस माह में स्वास्थ्य का बेहतर स्तर बनाए रख सकते हैं

 

*महापर्व छठ पूजा की विधि*

यह पर्व कुल मिलाकर 4 दिनों तक चलता है इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी से होते हैं और र सप्तमी को अरुण बेला में इस व्रत का समापन होता है कार्तिक शुक्ल चतुर्थी दर्शी को नहाए खाए के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है इस दिन से इस दिन से स्वच्छता की स्थिति अच्छी रखी जाती है पहले दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है

*खरना के दिन खीर का विशेष महत्व*

छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन करते हैं तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है साथ में विशेष प्रकार का पकवान ठेकुआ और मौसमी फल चढ़ाया जाता है अर्ध दूध और जल से दिया जाता है चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्ध है दिया जाता है उसके बाद कच्चा दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन कर दिया जाता है

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