1. देश भर में राज्यों के शिक्षा क़ानूनों को बदलने की ज़रूरत। ये पुराने शिक्षा क़ानून आज के दौर की ज़रूरतों के हिसाब से शिक्षा देने में बाधक हैं। इन क़ानूनों के रहते नई शिक्षानीति को लागू करना असम्भव होगा।
2. आधुनिक तकनीक व सोशल मीडिया के साथ जीने, प्राइवेट स्कूल में एडमिशन व फ़ीस में पारदर्शिता, रटने वाली परीक्षा प्रणाली और इंस्पेक्टर राज की असफलता जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में लेकर नए शिक्षा क़ानूनों के बिना नई शिक्षा नीति केवल मार्गदर्शिका बनकर रह जाएगी।
3. बच्चे की शिक्षा के शुरू के पाँच वर्ष सबसे महत्वपूर्ण लेकिन पूरे भारत में बच्चे आंगनवाड़ी, प्ले स्कूल, KG-नर्सरी की खिचड़ी में उलझे है। राष्ट्रीय स्तर पर इसमें स्पष्टता और बड़े सुधार की ज़रूरत।
4. दिखाने के लिए चंद सरकारी स्कूल तो हरेक राज्य में अच्छे कर लिए गए हैं लेकिन 95-98% स्कूलों की हालत बहुत ख़राब है। दिल्ली में हमने हरेक स्कूल के लिए एक न्यूनतम बेंचमार्क तय किया है कि कोई भी स्कूल इसके नीचे नहीं होगा।
दो चार स्कूल दिखाने, विडीओ बनाने या प्रेज़ेंटेशन बनाने के काम आते हैं लेकिन देश का भविष्य बनाना है तो सभी सरकारी स्कूलों को न्यूनतम गुणवत्ता स्तर तय कर ऊपर उठाना ज़रूरी।