नरकटियागंज रक्सौल भाया सिकटा होते हुए रेल लाइन पर रेल की मांग बढी!

नरकटियागंज रक्सौल भाया सिकटा होते हुए रेल लाइन पर रेल की मांग बढी!

Bettiah Bihar West Champaran

बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट!सिकटा ( पश्चिमी चंपारण) नरकटियागंज रक्सौल भाया सिकटा रेलखण्ड पर रेल परिचालन नही बढाने से लोगों का असंतोष अब आक्रोश में बदल रहा है। एक महीने में यदि इस रूट में रेल परिचालन नही बढाया गया तो रेल यात्री संघर्ष समिति चरणबद्ध आंदोलन करेगा। समिति के सचिव सह पूर्व प्रखंड प्रमुख नितिन उरँफ संजू श्रीवास्तव ने कहा कि इस रेलखंड पर ट्रेनों का परिचालन बढाने को लेकर राज्यसभा सदस्य सतीशचन्द्र दुबे, वाल्मीकिनगर सांसद सुनील कुमार समेत रेल राज्य मंत्री तक से गुहार लगाया गया पर कोई काम नही आया। लम्बे समय के बाद भी नरकटियागंज रक्सौल भाया सिकटा रेलखंड पर मात्र एक यात्री सवारी गाड़ी नरकटियागंज व रक्सौल के बीच महज दो बार आती व जाती है। बताया कि 12 अगस्त 2018 को आमान परिवर्तन के पश्चात गाड़ियों का परिचालन शुरू किया गया था। उसके बाद से यह रेल खंड जनप्रतिनिधियों व रेल प्रशासन की उपेक्षा का शिकार बनकर रह गया। इस रेलखंड पर छोटी लाइन के समय में नौ जोड़ी गाड़ियों का परिचालन होता था। जिसमें उत्तरप्रदेश के गोंड़ा से असम के तेजपुर के बीच दो एक्सप्रेस ट्रेनें शामिल थी। जिसे गंड़क एक्सप्रेस से जाना जाता था। इस रास्ते सिकटा स्टेशन से इस इलाके के लोगों के साथ काफी संख्या में पड़ोसी देश नेपाल के यात्रियों का आवागमन होता था। उस समय के समाजसेवी वयोवृद्ध विश्वनाथ प्रसाद व शम्भू कानन बताते है कि समस्तीपुर मंड़ल के ए ग्रेड के स्टेशनों के बाद सर्वाधिक टिकट बिकने वाले स्टेशनों में सिकटा का स्टेशन का नाम था। उस समय भी रेल विभाग इस स्टेशन को यात्री सुविधाओं से लैश नहीं किया था।अमान परिवर्तन के बाद उम्मीद बढ़ी थी कि अब इस रास्ते दूरगामी ट्रेनों का सुविधा मिलेगी। लेकिन वही हुआ ढा़क के तीन पात। स्थानीय प्रखंड प्रमुख उत्कर्ष उर्फ मणि श्रीवास्तव, सत्यप्रकाश सर्राफ, बुनीलाल पासवान, संजय सर्राफ, हरिमोहन उर्फ मधू स्वर्णकार आदि ने बताया कि समयानुसार रेल परिचालन नही होने से व्यसायियों समेत हर वर्ग के लोगों को परेशानी है। पश्चिम तरफ नरकटियागंज में अनुमंडल मुख्यालय वही पूरब रक्सौल अंतरराष्ट्रीय मार्केट का आना जाना बराबर लगा रहता है। वहां जाने के लिए एक मात्र टैक्सी ही विकल्प है। जिसमें लोगों का रोज आर्थिक रूप से दोहन होता है। लोग मजबूरन जान हथेली पर लेकर जाते है।

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