अब देखने को बहुत कम मिल रही है पोठिया झींगा गरई आदि मछलियां।
मझौलिया से संजय पांडे के सहयोग से बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट!
मझौलिया पश्चिम चंपारण।
आने वाले समय में देसी मछलियों के स्वाद से वंचित हो जाना पड़ेगा। मत्स्य पलकों के बीच अच्छी आमदनी को लेकर विदेशी मछलियों के पालन के प्रति बढ़ रहे रुझान इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। जल संसाधन से परिपूर्ण पश्चिम चंपारण जिले में मछली पालन की असीम संभावनाएं हैं ।एक अनुमान के अनुसार जिले में लगभग सात हजार हेक्टर पर मछली पालन किया जाता है जिसमें पांच पांच हजार हेक्टर में विदेशी मछलियों का पालन किया जाता है। इतनी अधिक भूमि में विदेशी मछलियों के पालन के बावजूद भी महज दस हजार टन ही मछलियों का उत्पादन हो पता है। वही महज दो हजार हेक्टेयर भूमि में देसी मछलियां लगभग 4 हजार टन उत्पादित की जाती है। मत्स्य विभाग देसी मछलियों के बजाए विदेशी मछली के उत्पादन पर विशेष ध्यान दे रहा है ।जिला मत्स्य विभाग के अनुसार जिले में विदेशी मछलियों का बड़े पैमाने पर पालन कर मत्स्य पालक अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बना सकते हैं। विदेशी मछलियों के पालन में ग्रास कॉर्प सिल्वर कॉर्प एवं गोल्डन फिश का पालन हो रहा है ।वर्तमान समय में इस व्यवसाय से लाखों लोग जुड़े हुए हैं। इस व्यवसाय से जुड़े तथा मत्स्य के क्षेत्र में प्रसिद्ध मत्स्य पालकों का कहना है कि ग्रास कार्प का पालन करने से अन्य देसी मछलियों की तुलना में अधिक बढ़ोतरी होती है ।यदि अनुकूल परिस्थिति में इसका पालन किया जाए तो 1 वर्ष में वजन 3 किलो तक हो जाता है। कमोबेश सभी मत्स्य पालकों की यही राय है ।मत्स्य पालक कम समय में अधिक उत्पादन के चक्कर में देसी मछलियों के उत्पादन पर कम ध्यान दे रहे हैं जिससे आने वाले समय में देसी मछलियां बाजार में ढूंढने से भी नहीं मिलेगी। बताते चले की अब बाजार में पोठिया झींगा गरई आदि मछलियां बहुत कम देखने को मिल रही है। इसके साथ-साथ आंध्र प्रदेश से आने वाली मछलियों ने भी पश्चिम चंपारण जिले में देसी मछलियों के उत्पादन पर ग्रहण सा लगा दिया है।
बताते चले की सरकार द्वारा मत्स्य पालन के लिए उचित दर पर ऋण भी मुहैया कराई जा रही है।जिसका लाभ मत्स्य पालक अवश्य उठा रहे हैं लेकिन देसी के बजाय विदेशी मछलियों का पालन व्यापक पैमाने पर कर रहे हैं।