नेकी एवं आत्मिक शुद्धि का महीना है रमजान।
माहे रमजान में खोल दिए जाते हैं जन्नत के दरवाजे।
बेतिया से वकीलुर रहमान खान की ब्यूरो रिपोर्ट!
बेतिया ( पश्चिम चंपारण)
रमजान मुबारक इबादत का महीना है। इस पूरे महीने मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे उपवास रखते हैं। अहले सुबह से लेकर रात तक सिर्फ अपने परवरदिगार यानी अल्लाह की इबादत में मसरूफ रहते हैं। मान्यता है कि इस पवित्र महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं।
रमजान के महीने में एक आम मुस्लिम की दिनचर्या की शुरुआत अहले सुबह 3 बजे से हो जाती है। इस वक्त भोजन ग्रहण कर जिसे सेहरी कहा जाता है। दिन भर रोजे की नियत की जाती है। सेहरी के साथ ही सुबह की पहली फर्ज की नमाज होती है।।उसके बाद सुबह से रोज मर्रा
की कामकाजी जिंदगी शुरू हो जाती है। इस बीच इबादत का सिलसिला भी जारी रहता है। जहां पांचो वक्त की नमाज के बाद रात लगभग 9 के बाद तमाम मस्जिदों में तरावीह की नमाज अदा की जाती है। तरावीह की नमाज में कुरान का क्रमबद्ध दोहराव होता है। नमाजी पूरे महीने कुरान के श्रवण और मनन का लाभ उठाते हैं। रोजे का मतलब केवल भूखा प्यासा रहना नहीं है। यह आत्मा में अच्छाइयों एवं सद्भावनाओं को जगाने की प्रक्रिया है। कठिन तपस्या है। रोजे के दौरान इंद्रियों पर वश रखना बेहद जरूरी है।
इस दौरान वर्जित एवं बुरी बातों की तरफ जाना तो दूर उनके बारे में सोचना भी गुनाह है। दूसरों के बारे में बुरा सोच कर झूठ एवं तकलीफ पहुंचाने वाली बात कह कर पीठ पीछे बुराई कर रोजे नहीं रखे जा सकते। रोजे इसलिए भी कठिन माने जाते हैं क्योंकि दुनिया की तमाम उलझने और तल्ख सच्चाइयों के बीच रोजेदार को मन वचन और कर्म से खुद को अनुशासित एवं संयमित रखना होता है। इसी कारण इसे आत्मिक शुद्धि और नेकी का महीना कहा जाता है।