मोतिहारी: बिहार में शिक्षा की तस्वीर बदलने लगी है। मैंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने का बीड़ा उठाया है। इस क्रम में राज्य के विभिन्न जिलों में संचालित सरकारी विद्यालयों व शिक्षक प्रशिक्षण केंद्रों का जायजा ले रहा हूं। आज जांच की बात सुन कर सभी आए है, लेकिन मैं जानता हूं अभी भी दस प्रतिशत लोग नहीं आते।उक्त बातें शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने शुक्रवार की देर शाम शहर के छतौनी स्थित जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के निरीक्षण के उपरांत डीएलईडी के छात्रों व प्रशिक्षण ले रहे प्रधानाध्यापकों को संबोधित करते हुए कही। पढ़ाएंगे नहीं तो पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी।
अब हालात बदले हैं : केके पाठक
कहा कि जब मजदूर का बेटा मजदूर ही बनेगा, तो शिक्षा पर खर्च का क्या फायदा? शिक्षकों के सहयोग से शिक्षा व्यवस्था में सुधार हो रहा है। पहले स्कूलों में 50 फीसदी से भी कम बच्चों की उपस्थिति होती थी, लेकिन अब हालात बदले हैं।छात्रों को कहा कि हर साल डिग्री लेंगे तो हर साल नौकरी होगी। कहा कि शिक्षक बनने के लिए वहीं लोग आवेदन करें जिन्हें शिक्षा से लगाव है और वें गांव में जाकर रह सकें, अन्यथा डिग्री बेकार है।कहा कि सेवानिवृति व नियोजित शिक्षकों की बीपीएससी से नियुक्ति को जोड़ दिया जाए तो हर साल अगस्त में 40 से 50 हजार रिक्तियां होंगी। उन्होंने प्रशिक्षण ले रहे प्रधानाध्यापकों से कहा कि तेल का खर्च आने-जाने से होता है, लेकिन आप गांव में रहते है तो उसी पैसे में आप बच्चों को बेहतर शिक्षा दें सकेंगे।इसके उपरांत उन्होंने डायट में प्रशिक्षण संबंधित सुविधाओं को देखा। उन्होंने शिक्षकों के लिए खाना बनाने वाले कैंटीन, कंप्यूटर कक्ष, परिसर व भवन को देख संतोष व्यक्त किया।इसके पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक व जिलाधिकारी सौरभ जोरवाल का परिसर में डायट के प्रभारी प्राचार्य शरद जैन ने अंगवस्त्र व पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। मौके पर रमेश चंद्रा, एडीएम पवन कुमार सिन्हा, डीपीओ साहेब आलम, हेमचंद्र, नित्यम कुमार गौरव, प्रतिभा कुमारी, सुजीत कुमार सहित डायट के सभी शिक्षक व कर्मी उपस्थित थे।
मिशन दक्ष के तहत बच्चों को बनाएं मजबूत
केके पाठक ने कहा कि किसी भी तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। आप शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं तो आपको समय से स्कूल आना होगा और बच्चों को पढ़ाना होगा।कहा कि शिक्षक प्रशिक्षण में शत प्रतिशत उपस्थिति होनी चाहिए। कहा कि कमजोर बच्चों को अकलमंद बनाने की चुनौती है। हमें ऐसे बच्चों की पहचान कर उन्हें बेहतर बनाना है, ताकि उन्हें अपने दोस्तों से ताना न सुनना पड़े।_