राम मंदिर के नाम पर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के दौड़ में जब लालू ने अडवाणी की गर्दन मरोड़ी थी

राम मंदिर के नाम पर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के दौड़ में जब लालू ने अडवाणी की गर्दन मरोड़ी थी

Delhi National News Politics

प्रियांशु= राजनीती विश्लेषक ! नई दिल्ली: ये सन् 1990 का दौड़ था जब मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने और पिछड़ी जातियों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले ने पूरे देश का सियासी पारा बढ़ा दिया था।  इन्दिरा और राजीव के दौड़ से फाइलों में गुमनाम पड़ी धूल फांकती मंडल आयोग की सिफ़ारिश को लागू करते ही भारत दो हिस्सों में बंट गया..! रिपोर्ट लागू करने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह रातों-रात सामाजिक न्याय के पुरोधा और गरीब-पिछड़ों के मसीहा घोषित कर दिए गए..!

इस राजनैतिक उथल पुथल के कारण मजबूत पिछड़ी जातियां जनता दल के इर्द गिर्द जमा होने लगी थी। ये वो दौड़ था जब एक अधिसूचना ने सभी राजनैतिक दलों के वोट बैंक को तोड़ कर रख दिया था, देश दो हिस्सों में बंट गया था।

फिलहाल मंडल आयोग पर विस्तार से नहीं लिख रहा हूं, लेकिन मोटे तौर पर इसके लागू होते ही भारतीय जनता पार्टी का अस्तित्व गोते खाने लगा था। आरएसएस ने भाजपा के हिन्दू वोट बैंक में सेंधमारी देखते ही देश में साम्प्रदायिक माहौल तैयार करना शुरू कर दीया। हिन्दू धर्म के ज्यादातर पिछड़ी जातियों के वोटों पर निर्भर भाजपा, किसी भी शर्त पर उसे खोना नहीं चाहती थी।

हिंदू वोट में विभाजन देखते ही भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने श्री राम जन्मभूमि का राग छेड़ दिया और सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा के शुरुआत की घोषणा कर दी। ये आजाद भारत में हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की सबसे पहली साज़िश थी।

तत्कालीन हिंदुत्व के फायर ब्रांड और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा की कमान संभाल ली थी। उनका मुख्य उद्देश्य बिहार, यूपी, एमपी और राजस्थान के हिंदुओ को एक करना था क्योंकि ये वही राज्य थे जहां मंडल आयोग की सिफ़ारिश से लाभान्वित होने वाली जातियां सबसे ज्यादा थी।

चुकी भाजपा वीपी सिंह सरकार को अपना बाहरी समर्थन दे रही थी, केंद्र सरकार भी इस पर लाचार थी, चौधरी देवीलाल इस्तीफ़ा दे चूके थे, अडवाणी की रथयात्रा ने जनता दल की सरकार को खतरे में डाल दिया था..! देखते ही देखते पूरे देश में राम मंदिर की बयार तेज़ हो गई, मंडल आयोग का मुकाबला अब रथयात्रा से किया जाने लगा था।

आडवानी को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं दिख रही थी, तभी रथयात्रा शुरू होने के पहले लालू जी की दिल्ली में उनसे मुलाकात हुई, तब लालू जी ने आडवाणी जी से रथयात्रा रोकने की गुज़ारिश की थी।

लालू जी ने कहा था, “हम आपके सामने हाथ जोड़ रहे हैं। आप दंगा फैलाने वाली रथयात्रा रोक दीजिए। दंगा हो जाएगा, क़ानून व्यवस्था का संकट हो जाएगा। अगर नहीं मानियेगा तो कम से कम बिहार में नहीं घुसने देंगे।”

आडवाणी ने अहंकार रूपी तेवर दिखाते हुए रौब में जवाब दिया था, “रथयात्रा होगी। देखता हूँ, कौन माई का दूध पिया है जो रथयात्रा को रोकेगा।” लालू जी ने भी जोरदार जवाब दिया था, “हम माई का भी दूध पिये हैं और भैंस का भी दूध पिये हैं। बिहार में आईए तब पता चलेगा!

इधर बिहार अभी 89 के भागलपुर दंगों से ठीक तरह से उबरा भी नहीं था कि आडवानी की रथयात्रा भीतरी सीमाओं में प्रवेश कर चुकी थी। लालूजी को पूर्वानुमान था कि आडवानी के रथयात्रा से साम्प्रदायिक भाईचारे को खतरा होगा..! हुआ भी कुछ एसा ही..! रथयात्रा जिस शहर से होकर गुजरी वहां आपसी रंजिशों ने दंगे का रुप ले लिया, श्री राम के नाम पर निकाले गए रथ के पहिए खून से नहा चूके थे।

रथयात्रा को बिहार से होकर अयोध्या जाना था। लालू जी के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती थी, उन्होंने तुरंत राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की मीटिंग बुलाई और रथयात्रा रोकने के लिए अडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया।

योजना बनी, अडवाणी की गिरफ्तारी के लिए सासाराम में हेलीकॉप्टर भेजे गए..! लेकिन गोपनीयता भंग हो गई, अडवाणी को इसकी सूचना मिल गई, उन्होंने ने अपना रूट बदल लिया था, फिर धनबाद में रोकने की योजना बनी किंतु अधिकारियों ने कानून व्यवस्था का हवाला देकर मना कर दिया।

लेकिन लालू जी का “प्लान बी” तैयार था। उन्होंने डीआईजी रैंक के आईएएस अधिकारी रामेश्वर ओरांव और आर.के सिंह को एक अणे मार्ग बुलाया, गृह सचिव को बुलाकर एक विशेष आदेश तैयार किया गया और अडवाणी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया गया। अबकी बार योजना गोपनीय रही।

10 अक्तूबर को सुबह होने से पहले अडवाणी जी समस्तीपुर से टंगवा लिए गए थे. आदेश की गोपनीयता इतनी तगड़ी थी कि, समस्तीपुर डीएम और एसपी भी इस फैसले से अंजान थे। लाल कृष्ण आडवाणी गिरफ़्तार हो चूके थे, सोमनाथ से निकली उनकी रथयात्रा दम तोड़ चुकी थी, उनके रायसीना हिल तक पहुंचने की लड़ाई को लालू जी नेशनाबुद कर चुके थे।

इसी घटना के बाद भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने कहा था, “हम उसे गाली दे सकते हैं, कलंकित कर सकते हैं, लेकिन दूसरा लालू पैदा नहीं कर सकते।”

वो लालू ही थे जिन्होंने अपने राज में सांप्रदायिक ताकतों को जूतियों से कुचलते हुए राज्य को दंगों से कोषों दूर रखा था। आज जब पूरे देश को नफरती तत्वों द्वारा बर्बाद किया जा रहा है, तब कहीं न कहीं सत्ता के गलियारों में लालू जी के देश के प्रति समर्पण, बिहार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा, सामाजिक न्याय और उनके मजबूत इरादे के लिए सलामी दी जा रही है।

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