छावनी में कोविड महामारी में जान गंवाने वालों की याद में श्रधांजली दी गयी।
बेतिया: न्यूज़ ब्यूरो वकीलुर रहमान खान, भाकपा-माले और इंकलाबी नौजवान सभा ने संयुक्त रूप से अपनों_की_याद_में, हर_मौत_को_गिनें हर_गम_को_बांटे अभियान के तहत छावनी में कोविड महामारी में जान गंवाने वालों की याद में श्रधांजली दी गयी, मृतक मोहम्मद हारून के पुत्र अब्दुल कुदूश ने आपबीती सुनाते हुए कहा कि मेरे पापा को कोविड के तमाम लक्षण था, बेतिया आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया गया जहां आक्सीजन के आभाव में जान गवानी पडीं, छावनी के ही शेख मोबारक कि पत्नी हसीना खातून ने कहा कि बिमारी बढी अस्पताल पहुचने के पहले ही मृत्यु हो गयी,
कोरोना के तमाम लक्षण था हम लोग समझ नहीं पाये, इनके जिला अध्यक्ष फरहान राजा ने कहा कि कोविड -19 महामारी में हमारे हजारों अपने बच नहीं पाए – वायरस से, फंगस से, आक्सीजन, अस्पताल या दवा के अभाव में, जिन्हें कोविड के अलावा कोई जानलेवा बीमारी थी – उनके लिए अस्पतालों में जगह न होने से उनकी जान गई. जलाने, दफ़नाने की जगह कम पड़ गई. गरीबों ने अपने आंसुओं के साथ अपनों को नदी में बहा दिया या नदी किनारे कफ़न डाल विदा किया. पूरा देश इस साझे दर्द को आज भी झेल रहा है.
भाकपा-माले राज्य कमिटी सदस्य सुनील कुमार यादव ने कहा कि इस ग़म को परिवार, समुदाय, धर्म, जाति में बांटना संभव नहीं – ये ग़म हम सबका अपना है, इसे साझा करके हम ग़म को बांट सकते हैं ।
सरकारें तो इन मौतों को गिनना, मानना नहीं चाहतीं, दुनिया न गिन पाए इसके लिए वे नदी किनारे दफनाई गई लाशों से कफन तक हटवा दे रही हैं. मौतों की गिनती न करके, सरकारें हमारे प्यारे अपनों को भुला देना चाहती हैं. पर हम अपनों को भुला नहीं सकते. इनमें से हरेक का नाम है, जिसे याद रखना ज़रूरी है, उनके लिए अपने प्यार को जिंदा रखना ज़रूरी है.
इनौस नेता असरार आलम, मोहम्मद आरिफ़, अब्दुल कुदूश, मृतक के परिवार के सदस्य कयुम,मेराज, साहेब राजा, नसिमा खातून, अरसलान, सुफियान,रेहान बाबू आदि लोगों ने श्राद्धाजंली अर्पित कर सरकार की आलोचना किया।